रिश्तों की राजनीति- भाग 22
भाग 22
सुबह के जनता दरबार में अक्षय और सान्वी को पहले से मौजूद देखकर जगताप पाटिल बेहद खुश थे। अक्षय सफ़ेद कुर्ते पायजामे में और सान्वी साधारण सूती साड़ी में जनता दरबार के लिए परफेक्ट लग रहे थे। जनता दरबार में आज आम जनता के साथ-साथ मीडिया भी मौजूद थी। अक्षय और सान्वी ने बड़े ही अच्छे से सबकी बात सुनी और मदद करने का आश्वासन भी दिया। दोनों का छोटा सा भाषण भी लोगों को बहुत पसंद आया।
जगताप पाटिल सान्वी को अपनी बहू बनाने के निर्णय से खुश थे। अक्षय को सुबह जनता दरबार में सबसे अच्छे से बात करते देख उनके मन में उम्मीदें जगने लगीं थी। जनता दरबार खत्म होने के बाद उन्होंने सान्वी और अक्षय को शाबाशी दी।
अक्षय के बाबा ने आज पहली बार उसे गले लगाकर शाबाशी दी थी। वो बहुत खुश था। अपने कमरे में आते ही उसने सान्वी को गले से लगाते हुए कहा….आज मुझे मिली शाबाशी का श्रेय तुम्हें जाता है सान्वी। शुक्रिया मेरी जिंदगी में आने के लिए।
अक्षय, मेरा सपना है तुम एक दिन सफल राजनेता बनो, अपने बाबा से भी ज्यादा सफल।
तुम्हारा हर सपना, तुम्हारा पति जरूर पूरा करेगा सान्वी।
सान्वी अक्षय की बात सुनकर भावुक हो जाती है। अक्षय उससे अपनी पुरानी गलतियों के लिए फिर से माफ़ी माँगता है।
सान्वी उसके सीने से लगकर कहती है…..आज से हम कभी अतीत की गलतियों के बारे में बात नहीं करेंगे।
सान्वी और अक्षय की वैवाहिक जिंदगी सही दिशा में जा रही थी।
अगली सुबह हर अखबार में अक्षय और सान्वी की तस्वीरें थी। अखबार में अपनी तस्वीरों को देखकर सान्वी की महत्वकांशा और भी बढ़ गयी थी। वो चाहती थी इस बार अक्षय को भी चुनाव लड़ने का मौका मिले।
वो अक्षय से कहती है…. रसोइये से कहकर खाना बनवा लेते हैं और अनाथ आश्रम चलते हैं बाँटने के लिए और साथ में कॉपी, पेंसिल भी ले लेंगे बच्चों में बाँटने के लिए। बस तुम यह देखो कि वहाँ मीडिया खुद से पहुँच जाए, ऐसा न लगे कि हमने उन्हें जानबूझकर बुलाया है।
ठीक है सान्वी, तुम बाकी तैयारियां करो। मैं मीडिया का इंतज़ाम करता हूँ।
सान्वी और अक्षय के इस आइडिये से जगताप पाटिल काफी प्रभावित होते हैं। धीरे-धीरे सान्वी और अक्षय की जगताप पाटिल से हटकर आम जनता में अपनी एक अलग पहचान बनने लगती है। अक्षय अपने बाबा से चुनाव में उसे और सान्वी को टिकट दिलवाने की बात करता है, लेकिन वो यह कहकर मना कर देते हैं कि एक ही घर से तीन लोगों का चुनाव लड़ना ठीक नहीं है। बेहतर है कि पहले अक्षय चुनाव जीत जाए, फिर अगली बार सान्वी के लिए कोशिश करेंगे। फ़िलहाल सान्वी उनके लिए चुनाव प्रचार करेगी।
अक्षय जब सान्वी को यह बात बताता है तो कुछ सेकण्ड्स के लिए उसका मन बुझ सा जाता है, लेकिन फिर वो खुद को संभालते हुए कहती है…..बाबा ठीक कह रहे हैं अक्षय। मैं हर रैली में तुम्हारे साथ रहूंगी, ऐसे भाषण लिखकर दूँगी कि सारी जनता तुम्हें ही वोट देगी।
अक्षय सान्वी को प्यार से गले लगा लेता है।
जहाँ एक तरफ जगताप पाटिल, अक्षय और सान्वी अपनी राजनितिक गतिविधियों में व्यस्त होते हैं। वहीं दूसरी तरफ अभिजीत और सिद्धि की मुलाकातें भी बढ़नी लगतीं हैं। एक दिन अभिजीत और सिद्धि कैफ़े में बैठे होते हैं। अभिजीत, सिद्धि से पूछता है….तुमने कभी चुनाव लड़ने के बारे में नहीं सोचा?
नहीं अभिजीत, मुझे राजनीति में बिल्कुल भी दिलचस्पी नहीं है। मेरे लिए मेरी वकालत भली है। जनता का भला करने के लिए जरुरी नहीं है कि राजनीति के क्षेत्र में जाया जाए। मैं जब गरीब लोगों के लिए केस लड़ती हूँ तो उनसे फीस नहीं लेती। ऐसा करने से मुझे आत्मिक संतुष्टि मिलती है और साथ ही साथ उनकी भी मदद हो जाती है।
ये तो तुम बहुत बड़ा काम कर रही हो।
इतना भी बड़ा काम नहीं है। मुझे जो तरीका मिला, बस मैं उस तरीके से उनकी मदद करने की कोशिश कर रही हूँ।
तुम्हारे आगे तो मैं अपने आपको बहुत छोटा महसूस कर रहा हूँ।
ऐसा मत कहो अभिजीत, किसी का बुरा न करना, सबकी भलाई के बारे में सोचना, ये सब लोग कहाँ कर पाते हैं। आज के जमाने में , अच्छा करना तो दूर की बात है, लोग दूसरों के लिए अच्छा सोच भी नहीं पाते हैं।
अच्छा यह बताओ तुम्हें राजनीति में रूचि है क्या?
नहीं, पहले तो मैं राजनीति और उनसे जुड़े लोगों से दूर भागता था, लेकिन सान्वी की अक्षय से शादी के बाद नज़रिया बदल गया है।
सिद्धि मुस्कुराते हुए पूछती है….नजरिया बदलने की बस यही एक वजह है कि कुछ और भी?
हाँ, है तो सही एक वजह। कोई अच्छा लगने लगा है मुझे, पर पता नहीं उसको मैं पसन्द हूँ कि नहीं?
इससे पहले कि सिद्धि अपना जवाब देती, शरवरी अचानक से वहाँ आकर अभिजीत को चौंका देती है।
हैलो सिद्धि, मैं शरवरी, अभिजीत के मामा की बेटी, सान्वी की शादी में हम मिले थे, अगर तुम्हें याद हो तो?
हैलो शरवरी, मुझे याद है।
तभी अभिजीत पूछता है….तुम यहाँ कैसे शरवरी?
दोस्तों के साथ कॉफी पीने आयी थी। जा ही रही थी कि तुम्हें देखकर रुक गयी।
सिद्धि, कुछ ही दिनों में अभिजीत और मेरी शादी तय होने वाली है। हम बचपन के दोस्त हैं और रिश्तेदार तो हैं ही।
अभिजीत घर चलें, देर हो रही है।
हाँ, शरवरी….
अभिजीत सिद्धि को बाय कहकर शरवरी के साथ अपने घर के लिए निकल जाता है और सिद्धि अपने जज़्बात दिल में समेटे वहाँ से निकल जाती है।
❤सोनिया जाधव
shweta soni
12-Sep-2022 02:50 PM
बेहतरीन 👌👌
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fiza Tanvi
10-Sep-2022 09:20 AM
Good
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Simran Bhagat
09-Sep-2022 10:23 PM
Bahut khoob🔥🔥
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